आयुर्वेद दिनचर्या : स्वास्थ्य वृध्दि और रोग निवृति का सोपान
महर्षी वाग्भट द्वारा रचित ‘ अष्टांग ह्दय ’ आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों में से एक है। आयुर्वेद के मूल प्रयोजन की सिद्धि हेतु यह ग्रंथ भी बहुत उपयुक्त रहा है। इस ग्रंथ में ‘ दिनचर्या ’ नामक अध्याय में स्वास्थ्य वृद्धि एवं रोग निवृत्ति हेतु दिनचर्या के कुछ विशेष नियमों का वर्णन है। जो कि प्रकृति के नियमों को जानकर , प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित कर , व्यक्ति को मनो-शारीरिक रूप से सुखी , स्वस्थ एवं दीर्घ आयु प्रदान करने का मार्ग प्रशस्त करते है। स्वास्थ्य की अभिलाषा रखनेवाले व्यक्तियों हेतु दिनचर्या के नियमों को निम्न लिखित अनुक्रम से प्रस्तुत किया जा रहा है। आशा है इन निर्देशों के अनुसरण से आप निश्चित लाभान्वित होगे। तो चलिए आज दिनचर्या के निर्देशों को जानने का प्रयास करते है – प्रथत: आयु की रक्षा के लिए सभी स्वस्थ्य व्यक्तियों को प्रात: ब्रह्ममुहर्त ( सूर्योदय से 45 मिनट पूर्व ) में निद्रा त्यागकर उठना चाहिए तथा शरीर चिंता को त्याग कर सर्व प्रथम ईश्वर का स्मरण करना चाहिए । प्राकृतिक रूप से उत्पन मल-मूत्र का त्याग करने के पश्च्यात , पर्याप्त मात्रा