सर्वाइकल स्पान्डिलाइसिस

सर्वाइकल स्पान्डिलाइसिस या सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस गर्दन के आसपास के मेरुदंड की हड्डियों की असामान्य बढ़ोतरी और सर्विकल वर्टेब के बीच के कुशनों (इसे इंटरवर्टेबल डिस्क के नाम से भी जाना जाता है) में कैल्शियम का डी-जेनरेशन,बहिःक्षेपण और अपने स्थान से सरकने की वजह से होता है। जब उपास्थियों(नरम हड्डी) और गर्दन की हड्डियों में घिसावट होती है तब सर्वाइकल की समस्या उठती है । इसे गर्दन के अर्थराइटिस के नाम से भी जाना जाता है। यह प्राय: वृद्धावस्था में उठता है । सर्विकल स्पॉन्डलाइसिस के अन्य दूसरे नाम सर्वाइकल ऑस्टियोआर्थराइटिसनेक आर्थराइटिस और क्रॉनिक नेक पेन के नाम से जाना जाता है। लगातार लंबे समय तक कंप्यूटर या लैपटॉप पर बैठे रहनाबेसिक या मोबाइल फोन पर गर्दन झुकाकर देर तक बात करना और फास्ट-फूड्स व जंक-फूड्स का सेवनइस मर्ज के होने के कुछ प्रमुख कारण हैं। प्रौढ़ और वृद्धों में सर्वाइकल मेरुदंड में डी-जेनरेटिव बदलाव साधारण क्रिया है और सामान्यतः इसके कोई लक्षण भी नहीं उभरते। वर्टेब के बीच के कुशनों के डी-जेनरेशन से नस पर दबाव पड़ता है और इससे सर्विकल स्पान्डिलाइसिस के लक्षण दिखते हैं। सामान्यतः ५वीं और ६ठी (सी५/सी६)६ठी और ७वीं (सी६/सी७) और ४थी और ५वीं (सी४/सी५) के बीच डिस्क का सर्विकल वर्टेब्रा प्रभावित होता है।

पोस्चरल समस्या है  यह
डॉ. पुरी  के  मुताबिकये  समस्या  एक  तरह  से  पोस्चरल  समस्या  हैजो आमतौर  पर  ज्यादा तर  हिन्दुस्तानियों में देखने को मिलती है। हमारे चलने और बैठने का तरीका हमारी गर्दन और कमर के बीच की हड्डी पर असर डालता है। बहुत देर तक सिर को एक ही पोजीशन में रखने के चलते गर्दन में अकड़न आ जाती है।  दरअसल,  हड्डियों  के  बीच  का  गैप  कम  हो  जाता  है और वहां से गुजरने वाली नसें तन जाती हैं। जिन क्षेत्रों की नसें दबती हैंउन जगहों पर दर्द होने लगता है। गर्दन का यह दर्द धीरे-धीरे कंधे और बांह तक फैल जाता है।
बच्चों और युवाओं की तुलना में बूढ़े लोगो में पानी की मात्रा कम होती है जो डिस्क को सूखा और बाद में कमजोर बनाता है। इस समस्या के कारण डिस्क के बीच की जगह में गड़बड़ी हो जाती है और डिस्क की ऊंचाई में कमी होती है। ठीक इसी प्रकार गर्दन पर भी बढ़ते दबाव के कारण जोड़ों और या गर्दन का आर्थराइटस होने की संभावना रहती है ।

लक्षण
सर्विकल भाग में डी-जेनरेटिव परिवर्तनों वाले व्यक्तियों में किसी प्रकार के लक्षण दिखाई नहीं देते या असुविधा महसूस नहीं होती। सामान्यतः लक्षण तभी दिखाई देते हैं जब सर्विकल नस या मेरुदंड में दबाव या खिंचाव होता है। इसमें निम्नलिखित समस्याएं भी हो सकती हैं-
गर्दन में दर्द जो बाजू और कंधों तक जाती है,  गर्दन की पीड़ा हाथों तक उतर जाना और नसों में खिचाव व सुन्नपन । गर्दन में अकड़न जिससे सिर हिलाने में तकलीफ होती हैए सिर दर्द विशेषकर सिर के पीछे के भाग में (ओसिपिटल सिरदर्द) कंधोंबाजुओं और हाथ में झुनझुनाहट या असंवेदनशीलता या जलन होनामिचलीउल्टी या चक्कर आनामांसपेशियों में कमजोरी या कंधेबांह या हाथ की मांसपेशियों की क्षतिनिचले अंगों में कमजोरीमूत्राशय और मलद्वार पर नियंत्रण न रहना (यदि मेरुदंड पर दबाव पड़ता हो)

रोग की पहचान करने के परीक्षण
गर्दन या मेरूदण्ड का एक्स-रेआर्थराइटिस और दूसरे अन्य मेरूदण्ड में होने वाली जांच ।
जब व्यक्ति को गर्दन या भुजा में अत्यधिक दर्द होता तो एमआरआई करवाना होगा। अगर आपको हाथ और भुजा में कमजोरी होती है तो भी एमआरआई करना होगा। तंत्रिका जड़ की कार्यप्रणाली को पता लगाने के लिये ईएमजीतंत्रिका चालन वेग परीक्षण कराना होगा।

प्रबंधन
इसके लिए कई प्रकार के उपचार उपलब्ध हैं । इन उपचारो का उद्देश्य होता है- नसों पर पड़ने वाले दबाव के लक्षणों और दर्द को कम करनास्थायी मेरुदंड और नस की जड़ों पर होने वाले नुकसान को रोकनाआगे के डी-जनरेशन को रोकना 

इन्हें निम्नलिखित उपायों से प्राप्त किया जा सकता है-
गर्दन की मांस पेशियों को सुदृढ़ करने के लिए किये गये व्यायाम से लाभ होता हैकिंतु ऐसा चिकित्सक की देख-रेख में ही की जाए। फिजियोथेरेपिस्ट से ऐसा व्यायाम सीखकर घर पर इसे नियमित रूप से करें।
सर्विकल कॉलर - सर्विकल कॉलर से गर्दन के हिलने डुलने को नियंत्रित कर दर्द को कम किया जा सकता है।
डेस्क का काम है तो हर 30 से 40 मिनट के अंतराल पर थोड़ा घूम आएं या मांसपेशियों को ढीला छोड़ दें।
टीवी लेटकर न देखें। पेट के बल  सोने  से  भी  गर्दन  और  कंधे में जकड़न  आ जाती है। कोशिश करें कि सीधा सोएं। सोने के लिए तकिए का प्रयोग न करें। अगर करें तो तकिया पतला और नरम हो।

उपचार
होलिस्टिक उपचार के अंतर्गत कई विधियों का समावेश किया जाता है। इन तरीकों से साधारण रोगी दो से तीन दिनों में और गंभीर रोगी एक से तीन महीनों में पूरी तरह स्वस्थ हो जाते है।
रिलेक्सेशन एन्ड एलाइनमेंट
इसमें हॉट व कोल्ड थेरैपीकैस्टर ऑयल थेरैपी या आकाइरैन्थर मसाज द्वारा गर्दन की मांसपेशियों व अन्य ऊतकों को लचीला बनाकर एक्टिव रिलीज और काइरोप्रैक्टिस विधियों के द्वारा असामान्य ऊतकों का एलाइनमेंट किया जाता है। अधिकतर मरीजों में एक या दो उपचारों के बाद डिस्क का नर्व पर पड़ने वाला दबाव कम हो जाता है और ऊतकों में सामान्य लचीलापन आ जाता है।
डिटॉक्सीफिकेशन
इसमें प्रमुख रूप से गुर्दा, यकृत और ज्वॉइन्ट क्लींजिंग के साथ एसिडिटी क्लींजिंग प्रमुख है। इन प्रक्रियाओं से शरीर में रोग पैदा करने वाले नुकसानदेह तत्व शीघ्रता से बाहर निकल जाते है।
न्यूट्रास्यूटिकल्स

ये भोजन में उपस्थित सूक्ष्म पोषक तत्व होते है। जैसे विटामिन, खनिज लवणग्लूकोसामाइनईस्टरीफाइड ओमेगा फैटी एसिड आदि। ये तत्व ऊतकों के क्षीण होने की प्रक्रिया को रोककर उनके दोबारा निर्माण में सहायक होते है। विटामिन बी और कैल्शियम से भरपूर आहार का सेवन करें।

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