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प्राण साधाना का दार्शनिक विवेचन

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प्राचीन काल दार्शनिक विकास की आरंभिक अवस्था का काल रहा। इस काल में दृश्यमान जगत (मेटाफिजिक्स) की सूक्ष्म मीमांसा से सांख्य दर्शन ने दार्शनिक प्रश्नों का हल ढूंढ़ने का प्रयास किया। जिसके फल स्वरूप विश्व के मूल में मौजूद तत्वों अर्थात दृश्यमान वस्तुओं की पहचान कर उनकी संख्या निर्धारित करने का प्रयास हुआ।   जगत में विद्यमान रुपात्मक और अरूपात्मक सत्तायें आकाश ,  वायु ,  अग्नि ,  जल एवं पृथ्वी। इन सत्ताओं के विषय शब्द ,  स्पर्श ,  रुप ,  रस ,  गंध। इन से निर्मित शरीर और उनकी पंच ज्ञानेन्द्रियाँ - कान ,  नाक ,  त्वचा ,  नेत्र और जिह्वा तथा पंच कर्मेद्रियाँ हात ,  पैर ,  उपस्थ ,  पायु ,  वाक् और मन ,  बुद्धि ,  चित्त अहंकार के अलावा एक परम चैतन्य सत्ता अर्थात पुरुष ,  इन सबको सांख्य ने जड़ और चैतन्य प्रकृति यह संज्ञा देकर उनका वर्गिकरण करने का प्रयास किया।   महाभारत आदि प्राचीन साहित्य में उपलब्ध साक्ष के आधार पर प्राचीन सांख्य ईश्वर को  26 वाँ तत्त्व मानता रहा है। इस दृष्टी से सांख्य ईश्वरवादी दर्शन रहा है। परन्तु परिवर्ति सांख्य में ईश्वर का कोई स्थान नहीं है। सांख्य ने सृष्टी की उत्त्पति

सर्वाइकल स्पान्डिलाइसिस

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सर्वाइकल स्पान्डिलाइसिस   या सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस   गर्दन   के आसपास के   मेरुदंड   की हड्डियों की असामान्य बढ़ोतरी और सर्विकल वर्टेब के बीच के कुशनों (इसे इंटरवर्टेबल डिस्क के नाम से भी जाना जाता है) में   कैल्शियम   का डी-जेनरेशन , बहिःक्षेपण और अपने स्थान से सरकने की वजह से होता है।   जब उपास्थियों(नरम हड्डी) और गर्दन की हड्डियों में घिसावट होती है तब सर्वाइकल की समस्या उठ ती है   । इसे गर्दन के अर्थराइटिस के नाम से भी जाना जाता है। यह प्राय: वृद्धावस्था में उठता है । सर्विकल स्पॉन्डलाइसिस के अन्य दूसरे नाम सर्वाइकल ऑस्टियोआर्थराइटिस ,  नेक आर्थराइटिस और क्रॉनिक नेक पेन के नाम से जाना जाता है।   लगातार लंबे समय तक कंप्यूटर या लैपटॉप पर बैठे रहना ,  बेसिक या मोबाइल फोन पर गर्दन झुकाकर देर तक बात करना और फास्ट-फूड्स व जंक-फूड्स का सेवन ,  इस मर्ज के होने के कुछ प्रमुख कारण हैं।   प्रौढ़ और वृद्धों में सर्वाइकल मेरुदंड में डी-जेनरेटिव बदलाव साधारण क्रिया है और सामान्यतः इसके कोई लक्षण भी नहीं उभरते। वर्टेब के बीच के कुशनों के डी-जेनरेशन से नस पर दबाव पड़ता है और इससे सर्विकल   स्पान

इंटरमिटेंट फास्टिंग : वजन कम करने का बेहतर उपाय

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आज के समय में मेटाबॉलिज्‍म को बढ़ाने के लिए आपको हर  2  से  3  घंटे में कुछ न कुछ खाना खाने की सलाह दी जाती है. मगर क्‍या कुछ घंटों में खाने से मेटाबॉल्जिम को बढ़ाने में मदद मिलती है ?  हर  3  घंटे में कुछ न कुछ खाने से मेटाबॉल्जिम बढ़ेगा या नहीं   ये   तो पता नहीं ,  परंतु ऐसे बार-बार खाने से दिन भर की कैलोरी जरूर बढ़ जाएगी। अधिक भोजन आपके  शरीर में विशेष रूप से अंगों के आसपास ज्यादा फैट का निर्माण करके आपको मेटाबॉलिक स्‍ट्रेस की तरफ ले जाता है और   यह   इंसुलिन प्रतिरोध को भी बढ़ावा देता है ।  ऐसे में   फास्टिंग   या उपवास एक इंसान की पूरी हेल्थ में सुधार करता है ।  जब आप खाना खाना बंद कर देते हैं ,  तो  12  घंटे से  36  घंटे तक कार्बोहाइड्रेट फ्यूल होता है ।  इस लिए आपका शरीर ऊर्जा के स्रोत के लिए फैट बनाता है ,  इसे  " मेटाबॉलिक स्विच" कहते हैं  ।  इसी   वजह से   इंटरमिटेंट   फास्टिंग   के दौरान आपको अनुशंसित  16  घंटे के उपवास की सलाह दी जाती है । तो आइए आज हम आपको   इंटरमिटेंट   फास्टिंग   के समय और खाने के पैटर्न के बारे में बताते हैं । इंटरमिटेंट   फास्टिंग   इंसान की